Last modified on 15 सितम्बर 2016, at 18:13

प्लास्टिक / उचित लाल यादव

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:13, 15 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उचित लाल यादव |अनुवादक= }} {{KKCatAngikaRachna}} <p...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

धरती केॅ नष्ट करि देलकै
प्लास्टिकें।
धरती के कोना-कोना
भरलोॅ छै प्लास्टिक सें।
आदमी ऐकरोॅ दुसपरिनाम
जानि केॅ भी
अनजान बनै छै।
सुविधा लेॅ प्लास्टिके केॅ
समाधान समझै छै।
केना बन्द होतै
ऐकरोॅ जनजीवन में उपयोग

हमरा लागै छै-व्यवस्था ही दोसी छै।
जें एकरोॅ बनवोॅ नै रोकै छै।
ई जानी केॅ भी
सब रोगोॅ के,
धरती आरोॅ पर्यावरण रोॅ ई काल छेकै।
प्राण वायु केॅ गन्दा करै रोॅ ई जंजाल छेकै।

तभियो नै रूकै छै आदमी।
हाय-राक्षस होय गेलोॅ छै आदमी।