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जब मुझे / सुभाष नीरव
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जब मुझे रास्ते की ज़रूरत थी
खड़ीं की तुमने दीवारें
खोदीं खाइयाँ।
जब मुझे ज़रूरत थी आलोक की
तुमने धकेल दिया
अंधी गुफाओं में।
जब मुझे ज़रूरत थी प्यार की
मेरे तलुवों के नीचे
बिछा दिया तुमने
नफ़रत का तपता रेगिस्तान।
सोचता हूँ
जो न तुम
खड़ीं करते दीवारें
न खोदते खाइयाँ
न धकेलते मुझे अंधी गुफाओं में
न बिछाते तपता रेगिस्तान
समझ कहाँ पाता
संघर्ष किस चिड़िया का नाम होता है
और मंजिल पाने का
सुख क्या होता है
संघर्ष के बाद।