भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जेठो के दुपहरिया / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:04, 15 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर' |अनुवादक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जेठो के दुपहरिया में तरबा गरमाबै छै।
पानी छै पतालो में कुइयां खनबाबै छै।

बेटी के लगन लागै, सुतलो सपना जागै
धड़फड़-धड़फड बाबुल, मड़वा छरबाबै छै।

आगिन उगलै चुलहा, मन में नाचै दुलहा
छप्पर के फुलंगी पर, कौवा गहलाबै छै।

पूरबा-पछिया गुमषुम, गुमषुम पीपल गछिया
कोयल गाबी-गाबी हमरा बहलाबै छै।

गल्ला से मिली गल्ला, झुम्मर गाबै छल्ला
हल्दी जे लपेसी के, रगड़ी लहबाबै छै।