भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छै बाबू / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:19, 16 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर' |अनुवादक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहिनें सब निमझान छै बाबू।
चैबटिया सुनषान छै बाबू।

सौसें गाँव मेॅ गीदर बोलै
लागै कि ष्मषान छै बाबू।

बूतरू सब हूलकी के खौजै
घुसलोॅ सब मुस्कान छै बाबू।

उमकै जेे कानून तोड़ी के
कहिनों उ बलवान छै बाबू।

सोन चिड़ैयाँ फेरू बनतै
हमरो इ अनुमान छै बाबू।