भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देखिये न मेरी कारगुज़ारी / अज्ञेय

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:19, 26 फ़रवरी 2008 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब देखिये न मेरी कारगुज़ारी
कि मैं मँगनी के घोड़े पर
सवारी पर
ठाकुर साहब के लिए उन की रियाया से लगान
और सेठ साहब के लिए पंसार-हट्टे की हर दुकान
से किराया
वसूल कर लाया हूँ ।
थैली वाले को थैली
तोड़े वाले को तोड़ा
-और घोड़े वाले को घोड़ा
सब को सब का लौटा दिया
अब मेरे पास यह घमंड है
कि सारा समाज मेरा एहसानमन्द है ।