मधुशाला / भाग 18 / हरिवंशराय बच्चन / अमरेन्द्र
जे हमरा प्यासे राखलकै
बनले रहौ वहू हाला,
जे जिनगी भर दौड़ैलेॅ छै
बनले रहेॅ वहू प्याला;
मतवाला रोॅ जी सें कहियो
निकले नै छै शाप कहीं,
दुःखी बनैलेॅ छै जें हमरा
सुखी रहौ ऊ मधुशाला !103
नै चाहे छी, आगू बढ़ी केॅ
छीनी लौं केकरो हाला,
नै चाहै छी, धक्के दै केॅ
छीनी लौं केकरो प्याला,
साकी हमरोॅ ओर नै देखौ
हमरा तनिक मलालो नै,
एतनै की कम छै आँखी सें
देखी रहलौं मधुशाला !104
सुनिये केॅ हाला, मद, मदिरा
जों एत्तेॅ छी मतवाला,
की गति होतै जों ठोरोॅ के
नीचें में ऐतै प्याला,
साकी हमरोॅ लुग नै अइयोॅ
पगलैबोॅ हम्में तय छै,
प्यासले हम्में मस्त, तोरोॅ ई
तोरहै मुबारक मधुशाला !105
हमरा भला जरूरत की छै
साकी सें माँगौं हाला,
हमरा भला जरूरत की छै
साकी सें चाहौं प्याला,
मस्तैलौं जों पिविये मदिरा
प्यार की करलां मदिरा सें !
हम्में तेॅ बेमत एतनै सें
नाम सुनी लौं मधुशाला ।106
हमरा दै लेॅ ही बोललकै
लेकिन की देलकै हाला,
दै के तेॅ बोललकै हमरा
लेकिन की देलकै प्याला,
समझी मनुखोॅ के कमजोरी
कुछुवे नै बोलौं हम्में,
मजकि आबेॅ देखी हमरौ
खुदे लजाबै मधुशाला ।107
बहुत अघैलोॅ कभियो हम्में
थोड़े टा पाबी हाला,
भोला-रं हमरोॅ साकी तेॅ
छोटोॅ रं हमरोॅ प्याला,
हमरोॅ छोटोॅ-रं दुनियाँ के
स्वर्ग बलैया लै छेलै,
हाय, हेरैलै बड़का जग में
हमरोॅ नान्होॅ मधुशाला ।108