भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मधुशाला / भाग 18 / हरिवंशराय बच्चन / अमरेन्द्र

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:59, 16 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन |अनुवादक=अमरेन्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


जे हमरा प्यासे राखलकै
बनले रहौ वहू हाला,
जे जिनगी भर दौड़ैलेॅ छै
बनले रहेॅ वहू प्याला;
मतवाला रोॅ जी सें कहियो
निकले नै छै शाप कहीं,
दुःखी बनैलेॅ छै जें हमरा
सुखी रहौ ऊ मधुशाला !103

नै चाहे छी, आगू बढ़ी केॅ
छीनी लौं केकरो हाला,
नै चाहै छी, धक्के दै केॅ
छीनी लौं केकरो प्याला,
साकी हमरोॅ ओर नै देखौ
हमरा तनिक मलालो नै,
एतनै की कम छै आँखी सें
देखी रहलौं मधुशाला !104

सुनिये केॅ हाला, मद, मदिरा
जों एत्तेॅ छी मतवाला,
की गति होतै जों ठोरोॅ के
नीचें में ऐतै प्याला,
साकी हमरोॅ लुग नै अइयोॅ
पगलैबोॅ हम्में तय छै,
प्यासले हम्में मस्त, तोरोॅ ई
तोरहै मुबारक मधुशाला !105

हमरा भला जरूरत की छै
साकी सें माँगौं हाला,
हमरा भला जरूरत की छै
साकी सें चाहौं प्याला,
मस्तैलौं जों पिविये मदिरा
प्यार की करलां मदिरा सें !
हम्में तेॅ बेमत एतनै सें
नाम सुनी लौं मधुशाला ।106

हमरा दै लेॅ ही बोललकै
लेकिन की देलकै हाला,
दै के तेॅ बोललकै हमरा
लेकिन की देलकै प्याला,
समझी मनुखोॅ के कमजोरी
कुछुवे नै बोलौं हम्में,
मजकि आबेॅ देखी हमरौ
खुदे लजाबै मधुशाला ।107

बहुत अघैलोॅ कभियो हम्में
थोड़े टा पाबी हाला,
भोला-रं हमरोॅ साकी तेॅ
छोटोॅ रं हमरोॅ प्याला,
हमरोॅ छोटोॅ-रं दुनियाँ के
स्वर्ग बलैया लै छेलै,
हाय, हेरैलै बड़का जग में
हमरोॅ नान्होॅ मधुशाला ।108