मधुशाला / भाग 19 / हरिवंशराय बच्चन / अमरेन्द्र
पैलौं ढेरे मदिरालय केॅ
आरो ढेरे सन हाला,
किसिम-किसिम के ऐलै हमरोॅ
हाथोॅ में मधु रोॅ प्याला,
एक-एक सें बढ़ी-चढ़ी केॅ
सुन्नर साकी आदरकै,
जँचले नै आँखी केॅ कोय्यो
पहिलोॅ-नाँखी मधुशाला ।109
एक समय पर छलकै छेलै
हमरोॅ ठोरोॅ पर हाला,
झुमलोॅ करै, समय इक छेलै
हमरोॅ हाथोॅ पर प्याला,
एक समय पीबैया, साकी
गला मिलै, आलिंगन लै;
आय दिखै छी निर्जन, मरघट
एक समय में मधुशाला ।110
दिल के भट्टी सुलगैलौं तेॅ
खिंचलौं लोरोॅ के हाला,
छलछल छलकै सद्दोखिन ही
यैसें पलकोॅ रोॅ प्याला,
नैन आय बनलोॅ छै साकी
गाल गुलाबी पीयै रं,
विरही कहोॅ नै हमरा, हम्में
चलतें-फिरतें मधुशाला !111
रंग बदलै छै कत्तेॅ अपनोॅ
जल्दी सें चंचल हाला,
घिसी जाय छै कत्तेॅ जल्दी
हाथोॅ में आबी प्याला,
कत्तेॅ जल्दी साकी केरोॅ
आकर्षण ठो घटै यहाँ;
भोररिया हेनोॅ नै दिखलै
रात रहै जे मधुशाला ।112
बूँद-बूँद लेॅ कभियो तोरा
तरसैतें रहतौं हाला,
कभी छिनैतौं हाथे सें ही
तोरोॅ ई मादक प्याला,
सुनोॅ पिबैया, साकी केरोॅ
मीट्ठोॅ बात में नै ऐयोॅ;
हमरो गुण हेनै केॅ कभियो
गाबै छेलै मधुशाला ।113
छोड़ी केॅ सब पंथ-मतोॅ केॅ
कहलैलोॅ छी मतवाला,
गोड़ धोय लेॅ बढ़लै मदिरा
फोड़लियै जेन्हैं प्याला,
तभिये मानी मधुशाला ई
हमरो पीछू आय फिरै,
की कारण छै ? छोड़ी देलां
हम्में जैबोॅ मधुशाला ।114