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मधुशाला / भाग 21 / हरिवंशराय बच्चन / अमरेन्द्र

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ऊ हाला, जे शांत करी देॅ
हमरोॅ अन्तर रोॅ ज्वाला,
छाँही-परछाँही हमरे टा
जैमें, ऊ हमरोॅ प्याला,
मधुशाला हौ नै, जैठां कि
मदिरा मधुर बिकाबै छै,
भेंट जहाँ मस्ती रोॅ भेंटै
हमरोॅ तेॅ ऊ मधुशाला ।121

मतवालापन लै हाला सें
तेजी देलेॅ छी हाला,
पागलपन लै केॅ प्याला सें
तेजी देलेॅ छी प्याला,
साकी सें मिली, मिली वही में
अपनै केॅ भूली गेलौं;
मिली मिठासे मधुशाला के
भूली गेलां मधुशाला ।122

मदिरालय रोॅ कुण्डी ठोकै
किस्मत रोॅ छुच्छोॅ प्याला,
लम्बा, ठंडा साँस भरी केॅ
बोलै छेलै मतवाला,
कतनी टा यौवन रोॅ हाला
पीएॅ सकलौं हम्में सब !
बंदो होलै कत्तेॅ जल्दी
हमरोॅ जीवन-मधुशाला !123

कहाँ दिखै ऊ स्वर्गिक साकी,
कहाँ दिखै सुरभित हाला,
कहाँ दिखै स्वप्निल मदिरालय,
कहाँ दिखै स्वर्णिम प्याला !
पीयैवालां मदिरा केरोॅ
मोल कभौ की जानलकै,
फूटी चुकलै मधु रोॅ प्याला
टूटी चुकलै मधुशाला !124

अपनोॅ युग में सबकेॅ अनुपम
लगलोॅ छै अपनोॅ हाला,
अपनोॅ युग में सबकेॅ अद्भुत
लगलोॅ छै अपनोॅ प्याला,
तहियो बूढ़ा सें जों पुछलां
एक यही उत्तर पैलां-
आबेॅ नै हौ पीयैवाला,
आबै नै ऊ मधुशाला !125

शुद्ध करी मदिरै के आबेॅ
नाम धरैलोॅ छै हाला,
मीना छै ‘मधुपात्रा’ कहाबै
‘सागर’ कहलाबै ‘प्याला’,
मौलवी, तिलक-त्रिमुण्डी पंडित
कैन्हें नी चैकै, बिचकै,
‘मय-महफिल’ अपनैलौं हम्में
करी केॅ आबेॅ मधुशाला ।126