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ज़िन्दगी ख़राब हो गई / दीपक शर्मा 'दीप'
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ज़िन्दगी ख़राब हो गई
और बे- हिसाब हो गई I
ख़ार- ख़ार हो गयी थी मैं
यकबयक गुलाब हो गई
ज़ुल्फ़ की घटा खुली अभी
हाय, महताब हो गई
देखते ही खो गया, उसे
इस क़दर शराब हो गई
दोस्तों की बात मान ली
साँस भी अज़ाब हो गई
कल तलक दबी- दबी रही
आज इन्कलाब हो गई
शाईरों ने टांक दी चुनर
शाईरी, शबाब हो गई
बा- शऊर दिल निकालती
माहरू, कसाब हो गई
‘दीप’ यूँ जगा दिया गया
ख़ाब ख़ाब ख़ाब हो गई