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दुखमोचन आनन्द / रमेश रंजक
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पंख में बाँध लिए दो छन्द
पहले स्वर के, पुनः ताल के
निर्विकार गति-यति सम्भाल के
दुखमय-जीवन-विहग हो गया —
बन्धनमय
स्वच्छन्द।
रंगों के सम्वाद संजोकर
सोंधी, तिक्त गन्ध के होकर
लघुता की क्षमता में खोजा
दुखमोचन
आनन्द।