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अन्धड़ आवेगों से / रमेश रंजक
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आँगन का हरा-भरा पेड़
कहता है मुझे नहीं छेड़
मैं हरियल ममता हूँ
कच्चे आँगन भर की
छोटी-सी ऊँचाई
हूँ पूरे बाखार की
बच्चों की सहपाठी
मेरी फलधर काठी
शरद-वरद छाती है
उम्र में अधेड़।
हर घड़ी सहारे को
छतनारी बाहें हैं
बाहर तक चौकन्नी
चौकसी निगाहें हैं
अन्धड़ आवेगों से
वर्षा के वेगों से
तेरे हित निशि-बासर
झेली मुठभेड़।