भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुट्ठी में दो-चार नहीं / दीपक शर्मा 'दीप'
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:34, 20 सितम्बर 2016 का अवतरण
मुट्ठी में दो-चार नहीं
कोई तेरा यार नहीं
यूँ ही गले लगाएगा
ऐसा तो संसार नहीं
सच्ची बातें लिखता हो
कोई भी अखबार नहीं
कहता हूँ सो करता हूँ
भाई! मैं सरकार नहीं
अपनी राह बनाओ ख़ुद
यूँ तो,बेड़ा पार नहीं
पूछ-पूछ कर मारेंगे
कहो दो मैं बीमार नहीं
चलो तवायफ़ ग़ाफ़िल है
हम तो इज़्ज़तदार नहीं
माना कि बेकार हैं 'दीप'
इतने भी बेकार नहीं I