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हल्लो राजा / राकेश रंजन

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हल्लो राजा!

कभी-कभी तो कठिन धूप में

चल्लो राजा!

कभी-कभी तो चिन्ता-भय से

गल्लो राजा!

कभी-कभी तो जठरागिन में

जल्लो राजा!


जब तिनके-भर सुख की ख़ातिर

स्याह जंगलों-जैसे दुक्खों से जुज्झोगे

तब बुज्झोगे

परजा होना खेल नहीं है

किसी जनम में

इसका सुख से मेल नहीं है!


मैंने पूछा :

राजा, कैसी है तुकबन्दी?

राजा बोले :

बेहद गन्दी!