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लोकतंत्र / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
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अजबे तंत्र
कोयला केरोॅ लूट
सब्भै केॅ छूट
हाथ की धोबौ
मुहोॅ पर कालिख
नागो के बिख।
ई केन्हौॅ राज
सब ठां छेदे-छेद
बड़का भेद।
के छै दहरोॅ
खेल आकि खेलाड़ी
तिनका में दाढ़ी।
जनता लली
भ्रष्टाचार-घोटाला
बिख रोॅ प्याला
देश कहाँ छै
केकरा छै मतलब
बेमत सब।
ई तेॅ तय छै
जबेॅ त्याग रोॅ मंच
ते लोकतंत्र।