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मेरी आँखों का मंज़र देख लेना / चिराग़ जैन
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Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:10, 2 अक्टूबर 2016 का अवतरण (चिराग जैन की ग़ज़ल जोड़ी)
मेरी आँखों का मंज़र देख लेना
फिर इक पल को समंदर देख लेना।
सफ़र की मुश्क़िलें रोकेंगी लेकिन
पलटकर इक दफ़ा घर देख लेना।
किसी को बेवफ़ा कहने से पहले
ज़रा मेरा मुक़द्दर देख लेना।
बहुत तेज़ी से बदलेगा ज़माना
कभी दो पल ठहरकर देख लेना।
हमेशा को ज़ुदा होने के पल में
घड़ी भर आँख भरकर देख लेना।
मेरी बातों में राहें बोलतीं हैं
मेरी राहों पे चलकर देख लेना।
न पूछो मुझसे कैसी है बुलन्दी
मैं जब लौटूँ मेरे पर देख लेना।
मुझे इक बेतआबी दे गया है
किसी का आह भरकर देख लेना।
ज़माने की नज़र में भी हवस थी
तुम्हें भी तो मेरे परदे खले ना।
मिरे दुश्मन के हाथों फैसला है
क़लम होगा मिरा सर देख लेना।