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दोस्त / ममता किरण
Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:38, 2 अक्टूबर 2016 का अवतरण (ममता किरण की कविता)
जब पदोन्नति पाने के लिए
या फिर
बॉस की निगाह में
ज्यादा वफ़ादार दिखने के लिए
दोस्ती का स्वांग भरता दोस्त
जिस पर आपने किया
अटूट विश्वास
कर देता है तुम्हारी चुगली
या फिर
कर देता है दगा
और आप रह जाते हैं
ठगे से
तब
बहुत याद आते हैं
बचपन के
वो निश्छल, मासूम, जान से ज्यादा प्यारे
और सच्चे दोस्त