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एक बजे के बाद /व्लदीमिर मयकोव्स्की

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1930 में मायकोवस्की ने आत्महत्या की थी। यह कविता मृत्यु के बाद उनकी जेब से मिली थी। शायद यह अपूर्ण कविता ही उनकी अन्तिम कविता ही थी

एक बजे के बाद
तुम
ज़रूर सो जाओगे

बहती हुई रात की आकाशगंगा
एक रजत धारा की तरह
जल्दी नहीं
कुचलते हुए तुम्हारे सपनों को
त्वरित तार भेजकर
खलबली पैदा करता तुम्हारे सर में
मै नहीं जगाऊँगा तुम्हें

जैसा कि वे कहते है
यही है अन्त कहानी का
ज़िन्दगी की चट्टानों से टकरा कर
चकनाचूर हो चुकी है
प्यार की नाव
हम अलग हो चुके है

और हमें ज़रूरत नही
आपसी चोटों
अपमान और दुखों की तालिका की
और देखो
संसार कैसा गुमसुम पड़ा है
आकाश अपने बटुए से अदा करता है रात
असंख्य सितारों के साथ

ऐसे समय में
कोई उठता है
सम्बोधित करते हुए
समय और इतिहास और अखिल ब्रह्माण्ड को...

अँग्रेज़ी से अनुवाद : विजेन्द्र