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मन की चिड़िया / श्रीकांत वर्मा

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वह चिड़िया जो मेरे आंगन में चिल्लाई,
मेरे सब पिछले जन्मों की
संगवारिनी-सी इस घर आई;
मैं उसका उपकार चुकाऊँ किन धानों से!!

हर गुलाब को जिसने मेरे गीत सुनाए,
हर बादल को जिसने मेरा नाम बताया,
हर ऊषा को जिसने मेरी मालाएँ दीं,
हर पगडंडी पर जिसने मुझको दुहराया,
मैं उस चिड़िया को
दुहराउँ किन गानों से!!

वह जो मेरी हर यात्रा में
मेरे आगे डोली,
अन्धकार में टेर पकड़ कर
जिसकी मैंने राह टटोली,
जिसने मुझको हर घाटी में,
हर घुमाव पर आवाज़ें दीं,
जो मेरे मन की चुप्पी का
डिम्ब फाड़ कर मुझ से बोली;
उसको वाणी दूँ?
किस मुख? किन अनुमानों से?

वह जिसको मैंने अपनी
हर धड़कन में महसूस किया है
वह जिसने नदियाँ जी हैं
आकाश जिए हैं, खेत जिया है,
वह जो मेरे शब्द शब्द में
छिपी हुई है, बोल रही है,
वह जिसने दे अमृत मुझे
मेरे अनुभव का ज़हर पिया है,
मैं उसको उपमा दूँ, तो
किस नीलकंठ, किन उपमानों से??