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गली का सूर्यपुत्र / श्रीकांत वर्मा

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इस कुहरा डूबी, अंधियारी गली में
भाग्य ने,
मुझे जन्म दिया है
जैसे कोई भटकी हुई चील
हड्डी का टुकड़ा, खाई में छोड़ जाए।

इसी गली ने मुझको पोषा है,
मोक्कड़ पर
उग आए
मुझ जैसे बौने को,
सूर्यपुत्र कहकर आशीषा है।
मैंने इस ममता को,
अनुक्षण स्वीकारा है।
मेरी जड़,
तुझमें है ओ माँ!! तुझ में है।

रोप नहीं पाएगा
कोई भी मुझे किसी गमले में,
मैं तेरी प्रतिभा हूँ।

घबरा मत कुहरे से।
सूरज के सात चक्रवर्ती अश्वों को कुछ
असुरों ने
घेरा है।
इसीलिए इतना अंधेरा है।
मैं तेरा बौना शिशु
मुक्त कर सकूँ शायद
सूरज को।
घबरा मत!

रोप नहीं पाएगा कोई भी मुझे
किसी गमले में।
मैं तेरी प्रतिभा हूँ।