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अश्कनामा / भाग 5 / चेतन दुबे 'अनिल'
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अपने चंद्रानन पर अरुणे!
यों अलकें बिखराया न करो,
जो दिल में तुझे बसाए हो
उसको यों ठुकराया न करो।
उर – पीड़ा कब तक सहूँ शुभे!
दर्दों में कब तक दहूँ शुभे!
तेरे बिन सारा जग सूना –
एकाकी कब तक रहूँ शुभे!
अरमानों के अंबार लिए
मन में मर्माहत प्यार लिए,
किस जगह झुकाऊँ शीश कहो
दृग में आँसू की धार लिए।
रूपसी! प्रणय का पाश कसो
निज अधरों से उच्चार करो,
आओ अरुणे! फिर आ जाओ
फिर प्यार करो, फिर प्यार करो।
भावना भटकती है दर- दर
तेरी सुधि में मारी – मारी,
अश्कों के बदले में संगिनि!
अन्तर की प्यास बुझा जा री।
अंतर में यही कामना है
तू उर में आठो याम रहो,
जब तक तन में है साँस शुभे!
अधरों पर तेरा नाम रहे।