भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क्या तुमने भी सुना / मोहन राणा
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:27, 29 अप्रैल 2008 का अवतरण
चलती रही सारी रात
तुम्हारी बेचैनी लिज़बन की गीली सड़कों पर
रिमझिम के साथ
मूक कराह कि
जिसे सुन जाग उठा बहुत सबेरे,
कोई चिड़िया बोलती झुटपुटे में
जैसे वह भी जाग पड़ी कुछ सुनकर
सोई नहीं सारी रात कुछ देखकर बंद आँखों से !
चलती रही तुम्हारी बेचैनी
मेरे भीतर
टूटती आवाज़ समुंदर के सीत्कार में
उमड़ती लहरों के बीच,
चादर के तहों में करवट बदलते
क्या तुमने भी सुना उस चिड़िया को
6.4.2002 सज़िम्ब्रा, पुर्तगाल