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जिया कहने भर के लिए / मोहन राणा

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कभी ना समाप्त होने वाला दिन

डूबते और उगते सूरज बीच

मैं दौड़ता किसी किनारे को छूने

घूम कर पहुँचता वहीं


दीवार पर चढ़ती बेल

दीवार पर फैलती बेल

दीवार पर बेल

आकाश पर चढ़ता दिन

आकाश पर फैलता दिन

आकाश पर दिन

काग़ज पर लिखा शब्द

काग़ज पर जड़ा शब्द

काग़ज पर शब्द


कोई अनुभव अधूरा

उसे नाम दे कर कहता

हुआ पूरा यह

जिया कहने भर के लिए


17.3.1996