भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जिया कहने भर के लिए / मोहन राणा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:36, 28 अप्रैल 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहन राणा |संग्रह=पत्थर हो जाएगी नदीं / मोहन राणा }} कभी ...)
कभी ना समाप्त होने वाला दिन
डूबते और उगते सूरज बीच
मैं दौड़ता किसी किनारे को छूने
घूम कर पहुँचता वहीं
दीवार पर चढ़ती बेल
दीवार पर फैलती बेल
दीवार पर बेल
आकाश पर चढ़ता दिन
आकाश पर फैलता दिन
आकाश पर दिन
काग़ज पर लिखा शब्द
काग़ज पर जड़ा शब्द
काग़ज पर शब्द
कोई अनुभव अधूरा
उसे नाम दे कर कहता
हुआ पूरा यह
जिया कहने भर के लिए
17.3.1996