भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारा कभी कोई नाम ना था / मोहन राणा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:08, 28 अप्रैल 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहन राणा |संग्रह=पत्थर हो जाएगी नदीं / मोहन राणा }} देख...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देखें तो कौन रहता है इस घर में

किसी आश्चर्य की आशा

धीरज से हाथ बाँधे खड़ा

मैं देता दस्तक दरवाज़े पर

सोचता-कितना पुराना है यह दरवाज़ा

सुनता झाडि़यों में उलझती हवा को

ट्रैफिक के अनुनाद को

सुनता अपनी सांस को बढ़ती एक धड़कन को

पायदान पर जूते पौंछता

दरवाज़े पे लगाता कान

कि लगा कोई निकट आया भीतर दरवाज़े के

बंद करता आँखें

देखता किसी हाथ को रुकते एक पल सिटकनी को छूते

निश्वास जैसे अनंत सिमटता वहीं पर,


भीतर भी

बाहर भी

मैं ही जैसे घर का दरवाज़ा

अजनबी बनता

पहचान बनाता


28.2.2006