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वह औरत : मेरी माँ / दिविक रमेश
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वह औरत
जिसे तुम हव्वा कहते हो
- मेरी माँ है,
माँ-- एक गुदगुदा अहसास
- खुली आँखों में
- जैसे पूरा आकाश।
- खड़ी हो ज्यों धूप में
- सहमी-सी, भयाक्रान्त
- कोई बड़ी चिड़िया
- पंख फुलाए
- दुबकाकर
- नन्हा-सा शिशु।
हाँ
तुम्हें जो दौड़ती है काटने
तुम्हारे शब्दों में कुतिया
- मेरी माँ है
- मेरी रक्षक।
हवा में
गन्दे नाख़ूनों का फैलाव लिए
जो चमका रही है उंगलियाँ
अनाश्रित
ख़ुद ही आधार
ख़ुद ही छत
- पीले जंग खाए दाँत
- दिखा-दिखाकर
- जो बक रही है
- भूतनी-सी,
ईश्वर की यह प्रतिमा
मेरी माँ है--
आती
कुचलती हुई
ईश्वर की बेजान तस्वीरें
- हतप्रभ तुम
- अब उसे नहीं रोक सकोगे।