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पुन्न के काम आए हैं / दिविक रमेश

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सब के सब मर गए

उनकी घरवालियों को

कुछ दे दिवा दो, भाई!

कैसा विलाप कर रही हैं।


'कैसे हुआ?'


वही पुरानी कथा

काठी गाल रहे थे

लगता है ढह पड़ी

सब्ब दब गए

होनी को कौन रोक सकता है


अरी, अब सबर भी करो

पुन्न के काम ही तो आए हैं


लगता है

कुआँ बलि चाहता था


'हाँ

जब भी कुआँ बलि चाहता है

बेचारे मज़दूरों पर ही कहर ढहाता है।'