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जल गई है कोई कंदील मेरे भीतर/ हेमन्त शेष

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जल गई है कोई कन्दील मेरे भीतर

और शब्दों का मोम पिघलना शुरू हो गया है

यों बहुत दिनों बाद

खुली खिड़की

कविता की