भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रेम से हम हँसेंगे / हेमन्त शेष
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:16, 30 अप्रैल 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हेमन्त शेष |संग्रह=अशुद्ध सारंग / हेमन्त शेष }} प्रेम से...)
प्रेम से हम हँसेंगे
लड़ाई ख़त्म नहीं हुई
फिर चाहेंगे हम पछताना
कि जो कुछ हुआ इसी लायक था
हँसने, लड़ने, पछताने में वही चीज़ होगी
लायक होना सीख रहे थे हम
हँसते, लड़ते, पछताते किसी
प्रेम में