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कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी / पृष्ठ 21

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दासी से बोली जा जल्दी,
पति खड़े हुए हैं बाहर में |
ले आवो स्वागत से उनको,
स्वर्ण के सुन्दर इस घर में |
विप्र देव अन्दर आये,
ब्राह्मणी ने हर्ष मनाया है |
श्रीराम कृष्ण की जय बोलो,
उन ही की अद्भुत् माया है ।
सब वैभव सम्पति देख विप्र,
जाना यह प्रभु प्रकाश हुआ ।
थे भक्त प्रभु के सच्चे वो,
धन से मन बहुत उदास हुआ ।
पति का मुख देखा कुम्हलाया,
कर जोरि कहा क्या कारण है |
आनन्द मनाते क्यों न प्रभु,
आराम दिया नारायण है |
यह आनन्द स्वप्न बराबर है,
जब आँख खुले आराम नहीं |
श्री राम-कृष्ण धन सच्चा है,
इस धन से मुझको काम नहीं |
धन्य गरीबी धन्य-धन्य,
पल भर न नाम विसराती है |
भक्ति है प्रभु की निश्छलता,
वैकुण्ठ धाम पहुँचाती है |
भक्ति से आनन्द हुआ,
श्रीकृष्ण चन्द्र की बलिहारी |
भक्त सुदामा ब्राह्मण थे,
पूर्ण भई आसा सारी |