भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अब भी / शैलेन्द्र चौहान

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:50, 1 मई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलेन्द्र चौहान }} सभी माएँ होती हैं प्रसन्न अपने बच्...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सभी माएँ

होती हैं प्रसन्न

अपने बच्चों के प्रति प्रदर्शित

स्नेह से


बहुत अलग थी प्रतिक्रिया

उस बालक की मां की

असहज हुई वह

संशय था, कुछ भय भी

आँखों में उसकी


देख अजनबी चेहरे

अक्सर तो नन्हे बालक

रोने रोने को होते हैं


कभी कभी जब

बच्चे होते हैं प्रसन्न

माएँ होने लगती हैं भयभीत

अजानी आशंकाओँ से

अपघट से


अब भी होता है

ऐसा क्यों?