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जिहॉं जाबे पाबे / विनय कुमार पाठक

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जिहॉं जाबे पाबे, बिपत के छांव रे
हिरदे जुडा ले आजा मोर गॉंव रे

खेत म बसे हवै करा के तान
झुमरत हावै रे ठाढ़े-ठाढ़े धान
हिरदे ल चीरथे रे मया के बान
जिनगी के आस हे रामे भगवान

पिपर कस सुख के परथे छांव रे
हिरदे जुडा़ ले, आजा मोर गांव रे

इंहा के मनखे मन करथे बड़ बूता
दाई मन दगदग ले पहिरे हें सूता
किसान अउ गौंटिया, हावय रे पोठ
घी-दही-दूध पावत, सब्‍बे रे रोठ

लेबना ला खांव के ओमा नहांव रे
हिरदे जुडा़ ले, आजा मोर गांव रे

हवा हर उछाह के महमहई बगराथे
नदिया हर गाना के धुन ला सुनाथे
सुरूज हर देथे, गियान के अंजोर
दुख ला भगाथे, सुघ्‍घर वंदा मोर

तरई कस भाग चमकय, का बतावौं रे
हिरदे जुडा़ ले, आजा मोर गांव रे

मेहनत अउ जांगर जिहां हे बिसवास
उघरा तन, उघरा मन, हावै जिहां आस
खेत म चूहत पछीना के किरिया
सीता कस हावै, इंहां के तिरिया

ऐंच-पेंच जानै ना, जानैं कुछ दांव रे
हिरदे जुडा़ ले, आजा मोर गांव रे