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मधुबन लागे खेत खार / चेतन भारती

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सरग ले सुग्घर गरज के बादर,
अड़बड़ अमरित बरसा बरसे ।
मंजुर बनके मोर मन नाचे,
हरियर चद्दर तन म परगे ।।

लाख करोड़ के बात नी जानव,
मोला मिले बर अतके ।
चार पिलरवा संग जी जावन,
सबला मिले कस कसके ।।
हाँसत हावे मोर खेती खुशी में ,
धरती दाई के आँखी भरगे ।।
सरग ले सुग्घर....

हड़िया म चटके एक ठन शीथा,
आज नाचत हावय उमंग में ।
लगाके काजर सोना कमइलिन,
लचकत आवत हावय संवर के ।।
मधुबन लागे खेत खार मोर,
अब ‘राधा’ के मया पसरगे ।।
सरग ले सुग्घर...

टुकुर –टुकुर मुस्कावत हावे,
धनहा के लहरा देख कोकड़ा ह ।
उसनिंदा के रतिहा पहागे,
आज हाँसत गोठियात हावे डोकरा ह ।।
गद-गद होगे जिन्गी के कलौरी,
मरही-पोटरी के तन ह तरगे ।
सरग ले सुग्घर....