भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वाह रे मोर पड़की मैना / लक्ष्मण मस्तुरिया
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:56, 28 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लक्ष्मण मस्तुरिया |संग्रह= }} {{KKCatGeet}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
वाह रे मोर पड़की मैना
तोर कजरेली नैना
मिरगिन कस रेंगना तोरे नैना
तोरे नैना मारे वो चोखी बाण
हाय रे तोर नैना
गोरी सम रेंग रे जोड़ी
जीव ला ले डारे मोर
आठो पहर रे संगी
आँखी मा छाँव रे तोर
का फुरफुन्दी कहाव
घटा कस चुन्दी कहाव
चमके जैसन बिजली तोरे नैना
तोरे नैना मारे वो चोखी बाण
हाय रे तोर नैना
मोर अंधियार मया ला
देहे तैं अंजोर रे
लागे मया तोर संग मा
पीरा मारय जोर रे
का तोला चंदा काहव
मोर गर फंदा काहव
मोर लरी के माला तोरे नैना
तोरे नैना मारे वो चोखी बाण
हाय रे तोर नैना
गोरी ये तोर हसाई
मोर बड़े बैरी ये
रानी अउ मोर मराई
ये तोर पैरी ये
बाजे जब छुमुक छुमुक
नाचे मन ठुमुक ठुमुक
किंजर जाथे गर्रा तोरे नैना
तोरे नैना मारे वो चोखी बाण
हाय रे तोर नैना