भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
निगाहों के प्रश्न / राकेश खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:00, 1 मई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = राकेश खंडेलवाल }} बादलों में सँवरता हुआ कोई चेहरा<br> म...)
बादलों में सँवरता हुआ कोई चेहरा
मुझको ले जाता है यादों की किसी वादी में
और सावन के मोतियों में मुझे
तेरी आँखें दिखाई देती हैं
मन पखेरू उड़ान भरता है
नीले नभ के विशाल दामन में
ढूँढता फिरता है बस वो ही जगह
जिस जगह साँझ तक सवेरे से
चाह के इन्द्रधनुष बनते हैं
कोई इक अक्स चाह का आकर
इसकी बाँहों में उतरता आये
तब ही धुँधलाये हुए खाकों में
कोई आकार उभरता आये
फिर निगाहों के प्रश्न उठते हैं
फिर न उत्तर कोई नज़र आता
साँझ ढलती है, मेरी गठरी का
एक दिन और खर्च हो जाता