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अपने घर जल्लाद / मणि मोहन / कार्ल सैण्डबर्ग

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क्या सोचता है एक जल्लाद
जब रात गये काम से वापिस
अपने घर पहुँचता है?

जब बैठता है अपनी पत्नी और बच्चों के साथ
एक कप कॉफ़ी, हेम और अण्डे खाते हुए
क्या वे पूछते हैं उससे
कैसा रहा आज का दिन
या फिर वे बचते हैं ऐसे विषयों से और
मौसम, बेसबॉल, राजनीति
अख़बार की मज़ेदार ख़बरें
या फ़िल्मों की बातें करते हैं ?

जब वो कॉफी या अण्डों की तरफ
अपने हाथ बढ़ाता है
तो क्या वे उसके हाथों की तरफ देखते हैं ?

जब उसके मासूम बच्चे कहते हैं —
पापा, घोड़ा बनो, यह देखो ! रस्सी भी है !
तब क्या मज़ाक करते हुए वो जवाब देता है —
आज बहुत रस्देसियाँ देखीं , अब और नहीं ...

या उसके चेहरे पर आ जाती है
आनन्द की चमक और कहता है
यह बड़ी मज़ेदार दुनिया है
जिसमे हम रहते हैं ....

और यदि दूधिया चाँद झाँकता होगा
रोशनदान से
उस कमरे में जहाँ एक मासूम बच्ची सो रही है
और चन्द्रमा की किरणें घुल मिल रही हैं
बच्ची के कानों और उसके बालों से
यह जल्लाद ...
तब क्या करता होगा ?

सब कुछ आसान होगा उसके लिए
एक जल्लाद के लिए सब कुछ आसान होता है
मैं सोचता हूँ ।

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : मणि मोहन'