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आकाशवाणी / बालकृष्ण काबरा ’एतेश’ / ओक्ताविओ पाज़

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रात्रि के शीतल होंठ
करते उच्चरित एक शब्द
दुख का यह स्तम्भ
शब्द नहीं शिला
शिला नहीं छाया

मेरे वाष्पित होठों के
वास्तविक जल से आता
वाष्पित विचार
शब्द सत्य का
मेरी त्रुटियों का कारण

यदि यह मृत्यु है
तो केवल उसी के माध्यम से रहता हूँ मैं
यदि यह एकान्त है
तो बोलकर व्यतीत करता इसे मैं
है स्मृति यह
और मुझे कुछ भी याद नहीं

मुझे नहीं पता
क्या कहता यह
और मैं स्वयं भरोसा करता इस पर

कोई जी रहा है यह कैसे जानना
कोई जानता है यह कैसे भूलना
समय जो अधखुला रखता है पलकों को
और देखता है हमें, स्वयं को दिखाते हुए

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : बालकृष्ण काबरा ’एतेश’