भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मतलबी सपना / सन्तोष थेबे
Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:55, 6 दिसम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= सन्तोष थेबे |अनुवादक= |संग्रह=फाल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कुनैबेला
दुइटा मन
ठ्याप्प जोडिएर एउटै हुँदा
म तिमीलाई सपना बिपना जताततै देख्थँे
आजकल
खै कुन्नी के भएर हो
मन दुई फप्लेटो भएर फुटेको छ
बिपना त के
तिमीलाई सपनामा पनि देख्दिन
थुइक्क
सपना पनि मतलबी हुँदोरहेछ ।