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नव दुर्गा आराधना / सोना श्री

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शैलपुत्री की साधना, करती बारम्बार l
गिरिजानंदिनि माँ करो, विनती को स्वीकार ।।

जप-तप शिव का कर रही, ब्रह्मचारिणी रूप l
वनप्रियवासिनि मात का, लगता रूप अनूप ।।

तेरे मस्तक चंद्र है, मुख पर रवि का तेज l
मात चंद्रघन्टे करो, तम-बल को निस्तेज ।।

कुष्मांडा सुखदायनी, अष्टभुजा का रूप l
भक्त सभी हैं मात के, निर्धन हों या भूप ।।

माता हैं स्कंद की, पंचम दुर्गा रूप l
माता विद्यावाहिनी, ममता का प्रतिरूप ।।

छठा रूप धर कर किया, महिष असुर का नाश l
भव्या माँ कात्यायनी, जग में भरो प्रकाश ।।

असुर रक्त से था किया, काली ने अभिषेक l
माँ काली की अर्चना, देती सुफल अनेक ।।

माँ गौरी सुखदायनी, हरती दुख-संताप l
उमा-भवानी नाम से, पूजी जातीं आप ।।

सिद्धि-दायिनी कर रही, श्रद्धा से मैं गान l
मेरी सारी मुश्किलें, माँ कर दो आसान ।।