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कविता सूई नहीं / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
कविता सूई नहीं
जो पूरे मकान में
लालटेन लेकर ढूँढें
यह मिट्टी
अलग - अलग रंग में
लोगों को जोड़ती है
आग में तपे
तो ईंट
पानी में गले
तो गारा
और काटने पर उतरे
तो आरा