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कृत्रिमता / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
कृत्रिमता की कोख से
नहरें निकलती हैं
नदियाँ नहीं
आविष्कार के मलवे
इकट्ठा होते हैं
खुशियाँ नहीं
जानवरों की दुनिया
हमसे अच्छी है
वह प्यार करते हैं
क़समें नहीं खाते
औलादें पैदा करके
उन्हें बड़ा करते हैं
उम्मीदें नहीं पालते
सच का विश्वास
अनन्त होता है
जहाँ क़ुदरत का हाथ
नहीं पहुँच पाता
वहाँ भी
कोई हाथ होता है