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नेपथ्य से आवाज़ आती है / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
आग के गोले
अगर ठंडे न हों
तब बर्फ पिघले
अन्यथा वे स्वयं
बुझ जायें
छल -छद्म में
हारा हुआ
मारा हुआ
वह आदमी
हैरान
सब जानता है
सब समझता है
किन्तु, जब हों
बन्द दरवाजे सभी
वह कहाँ जाये
एक को जब जीतता है
दूसरे से हार जाता है
एक अच्छा आदमी
अक्सर, इसी में
मात खाता है
किन्तु, फिर नेपथ्य से
आवाज़ आती है
इस समर को
जीतना जो चाहते हो
भावनाओं से निकलकर
दूर जाओ
एक मुट्ठी आग लो
इस कोयले को फूँक दो
फूटकर अंगार से
सूरज उगेगा
तोड़कर काला धुआँ