रात के अंधेरे में दिन के बारे में सोच
आश्वस्त करता हूँ अपने आप को,
अपनी पिछली कविता पढ़
एक लम्बी साँस लेता,
हवा कहीं दूर भीतर चली जाती है भीतर
साँस अभी है
26.12.1995
रात के अंधेरे में दिन के बारे में सोच
आश्वस्त करता हूँ अपने आप को,
अपनी पिछली कविता पढ़
एक लम्बी साँस लेता,
हवा कहीं दूर भीतर चली जाती है भीतर
साँस अभी है
26.12.1995