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तुम आती हो / सरबजीत गर्चा / सलील वाघ
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इस दिन
किसी न किसी बहाने
तुम आती हो
यह मुझे अब पक्का पता चल गया है
क्योंकि
प्रकाश का स्रोत
ज़मीन से जब
लगभग एक सौ अस्सी अंश का कोण बनाता है
तब
कोमल-मुलायम मिट्टी पर
मामूली छोटे कंकड़ों की भी
परछाइयाँ पड़ती हैं
इस दिन
तुम बिना चूके आती हो
यह मैंने बिल्कुल जान लिया है
क्योंकि नया अस्फुट बौर
थोड़ा-थोड़ा कहीं एकदम प्रस्फुटित हो रहा होता है
और फिसलकर गिरने वाले पत्ते परस्पर
हवा में तैरते कहां से कहां चले जाते हैं
पेड़ों रास्तों ठिकानों
की देह से
एक बहुत उम्दा सुगन्ध आती है
मूल मराठी से अनुवाद : सरबजीत गर्चा