भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दो दुश्मन / तो हू
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:11, 5 मई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तो हू |संग्रह=जब पुकारती है कोयल / तो हू }} जरूरी हैं प्रे...)
जरूरी हैं प्रेम और दुलार
इनके बिना हम रह नहीं सकते
अत्याचार और उपेक्षा से
नफ़रत करते हैं हम
लेकिन हमारे दो दुश्मन भी हैं
ये दुश्मन हैं
अहंकार
और दूसरे पर हुक्म चलाने की आदत ।