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रिक्त जल अब रजत शंख... / कालिदास

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प्रिये ! आई शरद लो वर!

रिक्त जल अब रजत शंख

मृणाल से सित गौर उज्ज्वल

खंड शतशः व्याप्त दिशि दिशि

पवन वाहित शुभ्र बादल

व्योम नृप का व्यजन करते

चमर शत शत ज्यों लहर कर
प्रिये ! आई शरद लो वर!