भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फटा ट्वीड का नया कोट / नरेन्द्र शर्मा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:12, 6 मई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेन्द्र शर्मा }} तुम्हेँ याद है क्या उस दिन की नए कोट ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हेँ याद है क्या उस दिन की

नए कोट के बटन होल मेँ,

हँसकर प्रिये, लगा दी थी जब

वह गुलाब की लाल कली ?


फिर कुछ शरमा कर, साहस कर,

बोली थीँ तुम- "इसको योँ ही

खेल समझ कर फेँक न देना,

है यह प्रेम-भेँट पहली!"


कुसुम कली वह कब की सूखी,

फटा ट्वीड का नया कोट भी,

किन्तु बसी है सुरभि ह्रदय मेँ,

जो उस कलिका से निकली !


(फरवरी १९३७, 'प्रवासी के गीत' काव्य-संग्रह से)