भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ऐसे हैं सुख सपन हमारे / नरेन्द्र शर्मा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:19, 6 मई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेन्द्र शर्मा }} ऐसे हैं सुख सपन हमारे बन बन कर मिट जा...)
ऐसे हैं सुख सपन हमारे
बन बन कर मिट जाते जैसे
बालू के घर नदी किनारे
ऐसे हैं सुख सपन हमारे....
लहरें आतीं, बह-बह जातीं
रेखाए बस रह-रह जातीं
जाते पल को कौन पुकारे
ऐसे हैं सुख सपन हमारे....
ऐसी इन सपनों की माया
जल पर जैसे चांद की छाया
चांद किसी के हाथ न आया
चाहे जितना हाथ पसारे
ऐसे हैं सुख सपन हमारे....