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वह प्रगतिशील कवि / शैलेन्द्र चौहान
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अन्याय, असमानता, शोषण
क्रूरता, छद्म और झूठ पर
लिखीं ढेरों कविताएँ
करते हुए सब अन्याय
परिजनों, सहकर्मियों, सहयोगियों
और मित्रों पर
निर्बल मनुष्यों का
बेहिचक शोषण कर
खीसें निपोरते हुए जिया वह सर्वथा
प्रगतिशीलता और सज्जनता का
नकाब पहन
क्रूर आततयियों के सम्मुख
दैन्य से दोहरे हो
झूठ और प्रपंचों के सहारे
हथियाए उसने
अनेकों सम्मान,
पुरस्कार और प्रशंसापत्र
लगातार अवसरपरस्ती और
चाटुकारिता को अंदर से
पूजते-पोषते
विरोध, विद्रोह और विसंगतियों से
ले प्रेरणा वह भद्र कवि--
मूल्यों की जुगाली करता
कविताओं की विद्रूप भंगिमाओं में
प्रतिष्ठा को चूमता-चाटता
धूर्त और कुटिल
मुस्कान से
भोले और ईमानदार कवियों को
बहलाता रहा