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भूख हड़ताल का पाँचवा दिन / नाज़िम हिक़मत

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बन्धुओ, यदि मैं अच्छी तरह नहिं वह कह पाऊँ
जो तुमसे कहना है
माफ़ कर देना मुझे
क्योंकि सिर में चक्कर है, जैसे कुछ नशा है,
लेकिन राकी के न पीने से —
भूख से है, ज़रा-सा बस, नशा है।
योर्प के बन्धुओ, एशिया, अमरीका के बन्धुओ,
मैं न तो जेल में हूँ और न भूख हड़ताल पर हूँ,
मई के इस माह में, रात में घास पर लेटा हूँ,
मेरे सिर के ऊपर नज़दीक झुकी हुई आँखें तुम्हारी हैं — चमकती सितारों-सी —
और तुम्हारे हाथ पकड़े हूँ — सबके हाथों को एक हाथ बनाकर पकड़े हूँ,
जैसे मेरी जननी का हाथ हो,
प्रेयसी का हाथ हो, जीवन का हाथ हो।

बन्धुओ,
तुमने कभी मेरा साथ नहीं छोड़ा,
मेरा, मेरे देश, मेरी जनता का —
जितना मैं तुम्हारे देश को प्यार करता हूँ,
उतना ही मेरे देश को तुम प्यार करते हो, जानता हूँ।
धन्यवाद, बन्धुओ, धन्यवाद।

बन्धुओ,
मेरा मरने का इरादा नहीं
किन्तु यदि मेरी हत्या होकर रही,
तो भी तुम्हारे बीच जीता ही रहूँगा, जानता हूँ,
अरागाँ के गीतों में जीऊँगा,
उसकी पँक्तियों में जो आ रहे सुघर दिनों की बात करती हैं —
पिकासो के श्वेत कपोत में जीऊँगा,
रॉब्सन के गानों में जीऊँगा,

और सबसे अधिक,
सबसे अच्छी तरह,
मारसेई बन्दर के मज़दूरों के बीच,
अपने साथी के विजय-उल्लसित हास में जीऊँगा,
सच बात पूछो तो, बन्धुओ,
मैं प्रसन्न, पूरा प्रसन्न हूँ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : चन्द्रबली सिंह