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स्वप्निल द्वीप / शैलेन्द्र चौहान
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अच्छा होता
विस्मृत हो जातीं
सारी परिकथाएँ,
चमचम मनोहर वे
स्वप्निल द्वीप !
- यथार्थ चीर देता
- तलवार की धार से
- विगत और वर्तमान को
- दो भागों में
- ठहर जाती हवा
- छुप जाता चाँद
- हँसते रहते हम