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कैसी यह रात है / योगेंद्र कृष्णा

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सफेद चादर में लिपटी
कैसी यह रात है
जिसमें अंधकार की
शीतल छाया नहीं

हर तरफ
उजास ही उजास है
और आंखों में
कहीं नींद का साया नहीं...

थका-थका
बासी अलसाया
कैसा यह सहर है
जो दूर-दूर तक
धुआं ही धुआं है...